तेलिया अफगान गाँव का नाम बदलकर अब होगा तेलिया शुक्ल
1 min read
रिपोर्ट – सद्दाम हुसैन देवरिया
देवरिया: (उ0प्र0) देवरिया जिले के तेलिया अफगान गांव का नाम अब बदल जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार की सिफारिश के बाद गांव का नाम बदलने पर अपनी सहमति दे दी है। इस फैसले के बाद ग्रामीणों में खुशी का माहौल है। आमतौर पर इस गांव को बोलचाल की भाषा में तेलिया शुक्ल नाम से ही जाना जाता है, लेकिन राजस्व अभिलेखों में तेलिया अफगान दर्ज है।
अब सरकारी दस्तावेजों में भी गांव का नाम तेलिया शुक्ल होगा।
जिले के बरहज तहसील के भागलपुर विकास खंड के तेलिया अफगान गांव का नाम बदलने के लिए यहां के ग्रामीण पिछले एक दशक से मांग कर रहे थे। इस गांव में लगभग 3500 मतदाता हैं। ब्राह्मण बाहुल्य इस गांव में सभी जाति के लोग हैं।
इस गांव का नाम राजस्व अभिलेखों में भले ही तेलिया अफगान दर्ज है, पर बोलचाल में इसे तेलियां शुक्ला के नाम से ही लोग संबोधित करते हैं।
शैक्षणिक प्रमाण पत्रों में भी दर्ज है नाम लोकचर्चा है कि जब इलाके में अंग्रेजों का राज था उस वक्त यह गांव अफगानों का था। इसके चलते इस गांव का नाम सरकारी दस्तावेजों में तेलिया अफगान दर्ज हो गया। हालांकि, बोलचाल की भाषा में और क्षेत्र में यह तेलिया शुक्ल के नाम से ही चर्चित है। पर ग्रामीणों के लंबे प्रयास के बाद अब सरकारी दस्तावेजों में भी तेलियां शुक्ल दर्ज हो जाएगा। गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय, संस्कृत विद्यालय समेत अन्य सरकारी भवनों पर तेलियां अफगान (शुक्ला) लिखा गया है। अधिकांश विद्यार्थियों के शैक्षणिक प्रमाण पत्रों और आधार कार्ड में भी तेलिया अफगान (शुक्ला) ही दर्ज है।
गांव बसने की ग्रामीण सुनाते हैं कहानी तेलिया अफगान गांव के पूर्व प्रधान और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता रजनीश शुक्ल बताते हैं कि वर्षों पहले गोरखपुर जिले के (तब देवरिया भी गोरखपुर जिले का हिस्सा था) मामखोर गांव निवासी मां दुर्गा के अनन्य भक्त साधु भोरानाथ शुक्ल घूमते घूमते सरयू के किनारे स्थित तेलिया अफगान गांव पहुंचे थे। वहां उन्होंने एक कुटिया बनाई और वहीं साधना करने लगे। बताया जाता है कि अफगानों को यह नागवार लगा और वे उन्हें भगाने के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित करने लगे। परेशान होकर साधु बाबा ने चिता बनाई और आत्मदाह कर लिया। इस घटना के बाद से गांव में अकाल मौतें और दुर्घटनाएं होने लगीं, जिससे डरकर अफगानों ने पलायन करना बेहतर समझा। इसके बाद दिवंगत साधु अपने परिजनों के सपने में आए और उन्होंने यहां गांव बसाने को कहा तभी से इस गांव की नई आबादी अस्तित्व में आई।